Kuch Sach...
दिखावे की इस दुनिया में,
इक मासूम सच का है ईमान कहाँ!
अजनबी ज़माना पसंद है सभी को,
अपनों की तकलीफ की है पहचान कहाँ!
दोस्ती में ज़िन्दगी कर दे कुर्बान जो,
है आज ऐसा कोई इंसान कहाँ...
इक मासूम सच का है ईमान कहाँ!
अजनबी ज़माना पसंद है सभी को,
अपनों की तकलीफ की है पहचान कहाँ!
दोस्ती में ज़िन्दगी कर दे कुर्बान जो,
है आज ऐसा कोई इंसान कहाँ...
यहाँ पैसे की ही है तकदीर,
इंसान की कहीं कीमत है कहाँ!
मंजिलें बन गई हैं शौहरत और हवस,
तकदीर में फ़िर जन्नत है कहाँ!
ऐसी ज़मीन अब न किसीको रास आए,
जहाँ दिलों में मोहब्बत है कहाँ...
इंसान की कहीं कीमत है कहाँ!
मंजिलें बन गई हैं शौहरत और हवस,
तकदीर में फ़िर जन्नत है कहाँ!
ऐसी ज़मीन अब न किसीको रास आए,
जहाँ दिलों में मोहब्बत है कहाँ...
एक था वो कल, जो पेश कर गया तकलीफें,
जिस कल ने कभी दी पनाह कहाँ!
उस कल में जो थे पल, वो तजुर्बा बढ़ा कर चले गए,
उन्ही लम्हों की है अब परवाह यहाँ!
जो कल कभी करेगा सपनों को पूरा,
उस कल की है किसी को चाह कहाँ...
किसी अपने को अजनबी समझकर,
पूछा जाता है उससे कि है यार कहाँ!
ज़िन्दगी कर दे जो मुक़र्रर किसीके नाम,
उसके लिए भी ज़हन में है इंतज़ार कहाँ!
जो तह-ए-दिल से करे वफादारी,
उससे ही कहा जाता है कि है सच्चा प्यार कहाँ...
जिस कल ने कभी दी पनाह कहाँ!
उस कल में जो थे पल, वो तजुर्बा बढ़ा कर चले गए,
उन्ही लम्हों की है अब परवाह यहाँ!
जो कल कभी करेगा सपनों को पूरा,
उस कल की है किसी को चाह कहाँ...
किसी अपने को अजनबी समझकर,
पूछा जाता है उससे कि है यार कहाँ!
ज़िन्दगी कर दे जो मुक़र्रर किसीके नाम,
उसके लिए भी ज़हन में है इंतज़ार कहाँ!
जो तह-ए-दिल से करे वफादारी,
उससे ही कहा जाता है कि है सच्चा प्यार कहाँ...
शभ में निकलता है ज़माना आज का,
सूरज के नूर का है अब अफसाना कहाँ!
चाँद-तारोँ में सब ढूँढ़ते हैं मोहब्बत को,
हकीकत में है इश्क का ठिकाना कहाँ!
इम्तहानों से गुज़रता है हर प्यार,
इंतज़ार के बिना है अब आशियाना कहाँ...
चाँद-तारोँ में सब ढूँढ़ते हैं मोहब्बत को,
हकीकत में है इश्क का ठिकाना कहाँ!
इम्तहानों से गुज़रता है हर प्यार,
इंतज़ार के बिना है अब आशियाना कहाँ...