Thursday, June 3, 2010

रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो.....